आर्किमिडीज़ के सिद्धांत इन हिंदी

आर्किमिडीज़ के सिद्धांत का परिभाषा | केशिकत्व क्या है | संयानता | उत्प्लावन बल | सीमांत वेग | क्रांतिक वेग | आवर्त गति | सरल आवर्त गति | प्रत्यानयन बल | सरल लोलक ( पेंडुलम ) आर्किमिडीज़ के सिद्धांत का परिभाषा :-

पानी में जहाज का चलना

जब कोई वस्तु किसी द्रव्य में पूरी अथवा आंशिक रूप से डुबोई जाती है तो उसके भार में आभासी कमी होती है भार में यह आभासी कमी वस्तु द्वारा हटाए गए द्रव्य के भार के बराबर होती है |
  जैसे :-
1. पानी में जहाज का चलना |
नोट :-1.   बर्फ के टुकड़े को अगर पानी में डाला जाए तो वह तैरता हुआ प्रतीत होगा !

बर्फ के आयतन के 1 बटा 10 भाग पानी के ऊपर तथा 9 बटा10 भाग पानी के नीचे रहता है |
2. आपेक्षित घनत्व को हाइड्रोमीटर से मापा जाता है |
3. राकेट का उड़ना संवेग संरक्षण नियम पर आधारित है |
4. आर्कमडीज ग्रीस के विज्ञानिक हैं |

 आर्किमिडीज़ का सिद्धांत :-

 जैसे :-
1. जीवन रक्षक पेटी यह एक रबड के खोखले का बना होता है जिसमें हवा भरा होता है !
2. पनडुब्बी इसी जीवन रक्षक के सहारे पानी के ऊपर और नीचे आती जाती है |

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केशिकत्व क्या है :-
इसमें केश नली में द्रव का चढ़ना एवं उतरना केशिकत्व कहलाता है

केशिकत्व :-  इसमें केश नली में द्रव का चढ़ना एवं उतरना केशिकत्व कहलाता है |

 जैसे :-
1. शोखते द्वारा सिहाई का सोखना
2. बारिश के बाद किसानों द्वारा खेत में हल चलाना – भूमिगत |
3. लालटेन या लैम्प की बत्ती में तेल का ऊपर चढ़ना |
4. भूमिगत जल का ऊपर चड़ना |
नोट :-
1. क्वाफी ,पाउडर जल में शीघ्र ही घुल जाते हैं क्योंकि क्वाफी के मेंहीन कणों को जल केशिकत्व के द्वारा ही भीगा देता है |
2. समुंद्र में नदी के अपेक्षा  आसान होता है क्योंकि समुंद्र जल का घनत्व अधिक होता है |

सदिश राशी एवं अदिश राशी किसे कहते हैं दोनों में क्या अंतर होता हैं
  

संयानता :-

 जैसे :- 1. जैसे ही कांच के परत पर पानी और शहद डालते हैं तो पानी आसानी से बह जाता है लेकिन शहद नहीं बह पाता है क्योंकि संयानता बल अधिक होता है |
 2. मनुष्य दैनिक जीवन में सड़क पर आसानी से दौड़ सकता है ! लेकिन
 वह पानी में नहीं दौड़ पाता है क्योंकि पानी में संयानता बल अधिक होते हैं संयानता का मात्रक प्वाईज  होता है |


जैसे ही कांच के परत पर पानी और शहद डालते हैं तो पानी आसानी से बह जाता है लेकिन शहद नहीं बह पाता है क्योंकि संयानता बल अधिक होता है

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उत्प्लावन बल किसे कहते हैं :-


उत्प्लावन बल :-

 इसमें वस्तु ऊपर ऊपर की ओर एक बल कार्य करता है जिसे उत्प्लावन बल कहा जाता है |
 जैसे :-
लकड़ी के एक टुकड़े को पानी में डाला जाता है तो वह ऊपर जाता है लेकिन लोहे की एक कील पानी में डाला जाता है तो वह डूब जाता है |

सीमान्त वेग की परिभाषा "- 


 सीमांत वेग :-

जैसे :-  
  • 1.   पैराशूट के सहायता से नीचे उतरना सैनिक - सीमांत वेग से ही पृथ्वी पर उतरता है |
  • 2. बादल आकाश में तैरते हुए प्रतीत होते हैं क्योंकि बादल भाप के छोटे-छोटे कणों से मिलकर बना होता है इसका सीमांत वेग कम होता है !
 इस कारण वे हवा में तैरते हुए प्रतीत होते हैं |


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क्रांतिक वेग :-

जैसे :-
  • 1.   बरसात के दिनों में नदी नाले अपने अनुसार टेढ़े मेढ़े रास्ते बना लेते हैं
  • 2.   जब द्रव के बहने का वेग क्रांति वेग से कम होगा तो उसका बहना संयानता पर आधारित होगा !
लेकिन द्रव्य का वेग क्रांति वेग से अधिक होगा तो वह घनत्व पर निर्भर होगा |
इसी कारण ज्वालामुखी से निकला गाढ़ा लावा तेजी से बढ़ता है क्योंकि उसका घनत्व कम होता है इसी कारण क्रांति वेग बढ़ जाता है |
रसात के दिनों में नदी नाले अपने अनुसार टेढ़े मेढ़े रास्ते बना लेते हैं

आवर्त गति किसे कहते हैं :- 


आवर्त गति :-जब कोई पिण्ड एक निश्चित समयांतराल में एक ही निश्चित पथ पर बार-बार गति करती है उसे आवर्त गति कहते हैं |

लेकिन उसी निश्चित समयांतराल को आवर्तकाल कहते हैं आवर्तकाल कैपिटल “T” से प्रदर्शित करते हैं |

सरल आवर्त गति :- यदि कोई वस्तु एक सरल रेखा पर मध्यमान स्थिती ( मेन पोजीशन ) के इधर-उधर गति करे तो वस्तु का त्वरण मध्यमान स्थिति से वस्तु के विस्थापन के अनुक्रमानुपाती हो तो उसे सरल आवर्त गति कहते हैं |

note :-1. सरल आवर्त गति करने वाला कण जब अपनी मध्यमान स्थिति से  गुजरता है तो
  1. v  उसका त्वरण शून्य होगा |
  2. v  गतिज ऊर्जा अधिकतम होगी |
  3. v  स्थितिज ऊर्जा 0 होगी |
  4. v  वेग अधिकतम होता है |
  5. v  उस पर कोई बल कार्य नहीं करता है | 

note 2.  सरल आवर्त गति करने वाला कण जब अपनी गति के अंत बिंदुओं से गुजरता है तो
  1. v  त्वरण अधिकतम होगा |
  2. v  गतिज ऊर्जा 0 होगी |
  3. v  स्थितिज ऊर्जा अधिक होगी |
  4. v  वेग शुन्य होगा |
  5. v  उस पर कार्य करने वाला प्रत्यानन बल होगा |
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प्रत्यानयन बल :- जब कर अपनी समयावस्था में रहता है तो उस पर लगने वाला बल शून्य होता है लेकिन जब कण अपनी साम्य - स्थिति से विस्थापित हो जाए तब प्रत्यानन बल कार्य कर करना आरंभ करता है |


 सरल लोलक ( पेंडुलम ) :-

लोल घड़ीया गर्मी में शुष्क हो जाती हैं क्योंकि लोलक की लंबाई बढ़ जाती है इसलिए आवर्तकाल भी बढ़ जाता है

 लोल घड़ीया गर्मी में शुष्क हो जाती हैं क्योंकि लोलक की लंबाई बढ़ जाती है इसलिए आवर्तकाल भी बढ़ जाता है |

जिस कारण घड़ी शुष्क हो जाती है लेकिन सर्दी के मौसम में लोलक की लंबाई कम हो जाती है जिस कारण आवर्तकाल भी घट जाता है |

परिणाम स्वरूप सर्दी में लोलक घड़ीया तेजी से चलने लगती हैं |
परिणाम स्वरूप सर्दी में लोलक घड़ीया तेजी से चलने लगती हैं
 नोट
  • ü  चंद्रमा पर लोलक घड़ियों का आवर्तकाल बढ़ जाता है क्योंकि वहाँ स्माल जी ( g ) का मान पृथ्वीके तुलना में 1 बटा 6 गुना होता है |
  • ü  उपग्रहों में लोलक घड़ीया काम नहीं करती हैं क्योंकि वहां आवर्तकाल अनंत ( ) होता है |
  • ü  लोलक घड़ियों को पृथ्वी के तल से ऊपर या नीचे ले जाने पर आवर्तकाल बढ़ जाता है |
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नोट पॉइंट :- सरल मशीन बल आघूर्ण पर आधारित है |

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